Saturday 10 April 2010

महंगाई से खफा पत्नी

दफ्तर की घड़ी में पांच बजते ही मैंने अपना हड़प्पाकालीन स्कूटर निकाला और सिकंदर की तरह गर्व से सीना तान कर किक मारी तो वह गुर्राने लगा। कुछ दूर जाने के बाद पता चला कि उसे कुछ खुराक की जरूरत है। पेट्रोल पंप पर पहुंचा तो वाहनों की लंबी लाइन देखकर अचकचा गया। सोचा कहीं पंप वालों ने कोई ईनामी योजना तो शुरू नहीं कर दी। दस लीटर भरवाओ, पांच लीटर फ्री...। यह सोचकर तबीयत चकाचक हो गई। कन्फर्म करने के लिए पेट्रोल पंप वाले से फूछा तो उसने घूर कर इस तरह देखा, मानों ओसामा बिन लादेन को देख लिया हो। खैर... स्कूटर का पेट भरवाकर मैं आशियाने की ओर चल पड़ा।
घर केबाहर पहुंचा तो नजारा ही बदला हुआ था। सारी लाइटें बंद। किसी अनिष्टï की आशंका से मैंने अंदर घुसते ही ड्राइंग रूम की बत्ती जलाई ही थी कि पत्नी गरजीं-अभी से लाइट जलाने की क्या जरूरत है... कभी तो बचत की सोचा करो। ऐसा ही चलता रहा तो बुढ़ापा भाड़ झोंकते ही कटेगा।
मैंने सोचा शायद आज सास-बहू में फिर प्रेमालाप हुआ होगा। इसीलिए पत्नी का पारा सातवें आसमान पर है। मैंने पूछा-मां कहीं दिख नहीं रही हैं?
घूमने निकली हैं बुढ़ापे में आपके बाऊ जी के साथ... वह भी मेरी स्कूटी लेकर... जैसे स्कूटी पेट्रोल नहीं पानी से चलती है। पत्नी सांस लेने के लिए रुकीं और फिर शुरू हो गईं-आपकी दीदी आई हैं। अंदर सो रही हैं... वह भी पंखा लगाकर। अगर ज्यादा गर्मी लगती है तो कोठे पर जाकर सो जातीं.... शाम का समय है और हवा भी चल रही है।
मेरा माथा ठनका। सोचा, कोई खास बात है जो आज पत्नी क्लीन बोल्ड करने पर तुली हुई हैं। दिनभर सहेलियों से फोन पर गप्पें हांकने वाली आज बचत की बातें कर रही हैं। अभी मैं सोच ही रहा था कि एक कटोरी मेरे कान के पास से सर्र.... की आवाज करती हुई गुजरी। देखा, एक बिल्ली दुम दबाए भागी जा रही थी और पत्नी झाड़ू लेकर उसके पीछे दौड़ रही थीं। पत्नी बड़बड़ा रही थीं, सोचा था कि कुछ दूध से किफायत करूंगी लेकिन कलमुंही ने जूठा कर दिया।
खैर, पत्नी लौटीं तो पूछने की गुस्ताखी कर बैठा-आखिर पता तो चले कि मामला क्या है? जो बातें आज तक नहीं हुईं वे आज क्यों हो रही हैं?
पत्नी गरजीं-आज से फालतू खर्चे बंद।
ऐसी भी क्या नाराजगी कि मामले की पूंछ ही पकड़ में न आए, मैंने एक और जुर्रत की।
दफ्तर में दिनभर क्या भाड़ झोंकते हैं? पता है कि  रसोई गैस के रेट बढ़ गए हैं।
तो फिर क्या हुआ, तुम कहोगी आज से सांस लेना बंद... तो क्या बंद कर दूंगा? मेरा पारा थोड़ा सा उखड़ा।
पत्नी ने झल्लाकर कहा-जानते हो पेट्रोल और डीजल के दाम भी बढ़ गए हैं। मैं आज ही रमेश भाई से सैकेंड हैंड साइकिल खरीदवा देती हूं। पेट्रोल का खर्च बच जाएगा, तोंद को शर्म आएगी और चुस्ती भी बनी रहेगी।
अपने मामले में टांग अड़ती देख मैंने पूछा-और जो दिनभर खुद स्कूटी पर मोहल्ले का दौरा करती रहती हो वो?
पत्नी ने खूंखार नजरों से पल भर मुझे घूरा और बोलीं-यह मेरा निजी मामला है। अगर मैं दिनभर धूप में पैदल भटकती रही तो आपकी ही नाक कटेगी। लोग कहेंगे-देखो मिसेज झिलमिल कितनी काली कलूटी हैं। फिर मुझे ब्यूटी पार्लर जाना पड़ेगा... इसमें क्या कम खर्च होगा?
...इतना सुनते-सुनते मैं पत्नी की समझदारी का कायल हो गया।

Tuesday 6 April 2010

लंबी रात


चौराहे पर
चमकता विशाल प्रकाशपुंज
करता है उजाला
लेकिन
मैं तो हूँ बेघर
फुटपाथ है बसेरा
रोशनी में मेरी
पीठ पर न बरस पड़े
कहीं 'खाकी' का डंडा
इसलिए
ढूंढता हूँ अँधेरा कोना
जहाँ
न कोई आये न  जाये
बस!
ये लंबी रात
सुकून से कट जाये.

Wednesday 10 March 2010

साजिशों का शहर

फिर एक याद ने
मुझे रात भर जगाया
दिल के कोने में छुपे
गम ने जमकर रुलाया।

न उजाले में चैन
अंधेरा भी डराता है
अपनों के दिए जख्म
अब नहीं कोई सहलाता है।

साजिशों के शहर में
बन गया मैं शिकार
मांग न पाए कोई पानी
दिल के मेहमानों ने
कर दिया ऐसा प्रहार।

अब उम्मीद-ए-वफा नहीं उनसे
जिन्होंने दिल तोड़कर
सिर भी कुचल डाला
जिंदगी की इस हेराफेरी में
हमारा जहां ही लूट डाला।

चाहत में तेरी
हमने मांगी वफा सदा
तुम्हारे कदमों में बिछ जाने की
हमेशा 'बिलासपुरी' ने मांगी मुराद
लेकिन अफसोस
चकनाचूर हो गया
हसरतों का घरौंदा।

फिर भी एक ही है तमन्ना
मेरी मिट्टी भी आए काम तेरे
कतरा-कतरा खून का
पूरे कर दे अरमान तेरे
मिल जाए जो कभी सुबूत
मेरी बेगुनाही का ऐ दोस्त
सितारों में ढूंढ लेना
आपके अहसानों की रौशनी में
हमेशा जगमगाता रहूंगा।

Sunday 7 March 2010

हमने चाहा....

हमने चाहा कि कोई हमे बता दे
क्या है जिंदगी 
थके हुए मुसाफिर ने कहा...
कि रुकना है जिंदगी
गुजर गई कई सदियां....
पर हम समझ न सके
क्या है जिंदगी 
खुशियों के दायरे ने कहा...
प्यार है जिंदगी 
लेकिन अगर कोई मुझसे पूछे
कि क्या है जिंदगी
तो मैं तो बस यही कहूंगा-
ठोकर खाकर संभलना ही है जिंदगी।
-रामप्रसाद मरालू

Saturday 6 March 2010

उधार की महिमा

सुबह-सुबह उठा तो पाया आज पर्स खाली है। खाली बटुआ टटोलने के बाद दिमाग पर जरा सा बोझ डाला। दिमाग ने रात का बहिखाता खोला तो मुझे अहसास हुआ कि शाम को मैं अपने लंगोटिया यार रुल्दू के साथ लालपरी के अड्डे पर गया था। अजी लालपरी तो नाम है, रुल्दू का प्यार तो वोदका है। जब दूसरे के पर्स पर बोझ पड़े तो यह प्यार और जवां हो जाता है। 
ऐसा ही कल हुआ। दफ्तर से तन्ख्वाह लेकर निकले तो रुल्दू बोला-आज कुछ हो जाए भाई।
मैंने जवाब दिया-क्यों नहीं। जब लाल परी के अड्डïे की सीढिय़ां चढऩे लगे तो रुल्दू बोला-भाई पिछले महीने साले साहब की शादी थी। मजाक-मजाक में इतना खर्चा हो गया कि इस महीने की चिंता सताने लगी है। जो पगार मिली है उधार चुकाने में खप जाएगी।
मैं अपनी आदत के अनुसार तुरंत शेर बन गया-कोई बात नहीं, मैं हूं न। इतना सुनते ही रुल्दू का सीना और चौड़ा हो गया।
हम लालपरी के अड्डे पर पदार्पण कर चुके थे मैंने रुल्दू के खास ब्रांड वोदका का आर्डर दिया और अहाते में घुस गए। रुल्दू बोला-मंगवा क्या रहे हो। मैंने तीन-चार आइटमों का आर्डर दे दिया। प्लेट और पेग सामने आया तो जीभ लगी लपलपाने। पीने का दौर चला तो न जाने कब थमा।
मैं रुल्दू के पास गया और रात की बात पूछी। उसने बताया-मुझे वोदका ने इतना मदहोश कर दिया था कि होश बाकी न रहा। पूरी पगार रुल्दू को उनके महीने के राशन, मकान किराया, टेलीफोन और केबल का बिल चुकाने के लिए हंसी खुशी दे दी थी। फिर मैं समझा कि उधार की महिमा मुझ पर हावी हो चुकी है।
पैसे दिए पूरे तीन महीने, साढ़े तेरह दिन हो चुके हैं। मैंने रुल्दू को उधार देकर वह महीना तो किसी तरह काट लिया लेकिन बिना पंख सातवें आसमान पर उड़ रही हमारी दोस्ती को मानो उधार ने घायल कर दिया। उसके बाद हमारे बीच कम ही बातचीत होती। दो बार रुल्दू से लक्ष्मी वापस मांगने की जुर्रत भी की लेकिन उसने मुझे ऐसे घूरा जैसे मैं चूहा और वह बिल्ली हो। मैं अपने उन हरे नोटों को देखने के लिए तरस गया हूं।
ऐसा नहीं कि उधार की इस महिमा ने मुझे ही निहाल किया। मेरे कुछ अन्य दोस्तों को भी इससे दो-चार होना पड़ा। गत दिनों हमारे बिहारी बाबू किसी रिश्तेदार के यहां गए और ऐसे 'हादसे' में जख्मी होते बाल-बाल बचे। पेश है उनका किस्सा उन्हीं की जुबानी :
'अरे महाराज का कहें। एक दिन हम अपने दोस्तवा के इहां भोर में ही पहुंच गए। उनकी लुगाई जो बीमार थी न। हमें उहां पहुंचे थोड़ा सा टाइम ही हुआ था कि महाराज उन्होंने हमसे दो हजार रुपइया मांग लिया। हम तो पहले की कड़की झेल रहे थे। उन्होंने पैइसे मांगे तो महाराज हमें तो जैसे सांप ही सूंघ गया। हम तो बड़ी मुश्किल से पीछा छुड़ा कर उहां से खिसके। उसके बाद उनकी लुगाई का हाल पूछने की हिम्मत ही नहींं हुई।
उधार की महिमा ही ऐसी है। जो इसमें फंसा, फंसता ही चला गया। जिसने उधार दिया होता है वह इसलिए बात करने से कतराता है कि सामने वाला यह न सोचे कि पैसे लेने हैं इसीलिए बात की जा रही है। जिसने पैसे लिए होते हैं वह इसलिए बात नहीं करता कि अगर पैसे मांग लिए तो दे नहीं पाऊंगा। यह सोच दोनों को मतभेद की ओर ले जाने में कमी नहीं छोड़ती। फिर तो वही बात हो जाती है-जब से लिए हैं पैसे उधार, घट गया भाई का प्यार...।
कुछ समझे भइया...।
(दिल पर नहीं लेने का, व्यंग्य पर ओनली कमेंट देने का)

Wednesday 3 March 2010

थोड़ा इंतजार का मजा लीजिए...

हमारे जीवन में इंतजार का अपना ही मजा है। जो मजा किसी के इंतजार में है वह कहीं और नहीं है।
इस दुनिया में हर कोई किसी न किसी का इंतजार कर रहा है।
प्यार करने वालों को सदा अपने महबूब का इंतजार होता है। यही सोचते रहते हैं कि कब उनका दीदार हो। अगर वह जरा सा भी लेट हो जाए तो जैसे जान ही निकल आती है।
दूर रहने वाले प्रेमी प्रेमिका को लव-लेटर, एसएमएस और पोन का इंतजार होता है। दोस्त, रिश्तेदार और मां-बाप को अपने लाडले-लाडली के पत्र या फोन का इंतजार होता है। स्कूल-कालेज में पढ़ाई करने वालों को अपने रिजल्ट का इंतजार होता है। यहां तक कि जब परिणाम आने वाला हो तो कई दिन तक नींद भी नहीं आती। अगर किसी लड़के-लड़की की सगाई हो जाए तब तो उनकी नींद ही हराम हो जाती है। फिर शुरू हो जाता है शादी का लं...............बा सा इंतजार। जब शादी हो जाती है तो शुरू हो जाता है घर में किलकारी गूंजने यानी बच्चे का इंतजार।
जो आदमी भूखा होता है उसको अपने पेट के लिए रोटी का इंतजार होता है। रोटी तो आखिर रोटी है, चाहे वह ढाबे पर मिले या रेहड़ी पर या फिर घर में। वैसे घर के भोजन का तो अपना ही मजा होता है। आज के जमाने में बेरोजगारों को नौकरी का बेसब्री से इंतजार होता है, क्योंकि इतनी जमीन तो अब रही नहीं कि उसके सहारे ही जिंदगी गुजारी जा सके। जो नौकरी लग जाते हैं उनको छुट्टी का इंतजार रहता है, कि कब छुट्टी हो और कब ससुरालल जाएं।
इंतजार तो घरवाली को भी रहता है। आप पूछना चाहेंगे कि वह किस चीज का। अरे जनाब घरवाली को इंतजार होता है पहली तारीख का कि कब 'वो' तन्ख्वाह लाएंगे और कब मैं छीन लूं। सरकारी दफ्तरों में फाइलों का ढेर अफसर के साइन के इंतजार में रहता हगै। टीवी देखने वालों को आजकर इंतजार रहता है 'इमोशनल अत्याचारÓ का। नेता लोगों को इंतजार रहता है चुनावों का और इसके बाद जनता को इंतजार रहता है जीत जाने वाले नेताओं का जो पांच साल तक खत्म होने का नाम ही नहीं लेता।
कुछ लोगों को बैड टी का इंतजार होता है। कुछ को उठते ही बिस्तर पर 'अमर उजाला' का इंतजार होता है। इंतजार तो ऐसी चीज है जिसका संबंध हर व्यक्ति के साथ रहता है। इंतजार किसी भी चीज का हो, आदमी के लिए जरूरी है। इसके बिना जीवन में रस नहीं रहता। वह ठूंठ हो जाता है। इसी लिए किसी ने कहा है-थोड़ा इंतजार का मजा लीजिए...।
अच्छा फिर मुलाकात होगी.....मुझे आपसे मिलने का इंतजार रहेगा।
जय श्री राम।

पैसे कम

एक दिन रुल्दू नौकरी करने के लिए शहर में चला गया। उसने एक सेठ के पास नौकरी कर ली। एक दिन सेठ-सेठानी में तकरार हो गई और सेठानी मायके चली गई। सेठानी मायके गई तो सेठ को मौका मिल गया और वह उस रात अपनी प्रेमिका को घर में ले आया।
दूसरे दिन सुबह सेठ ने रुल्दू को सौ रुपए देते हुए कहा-इसके बारे में सेठानी को मत बताना कि मैं रात को अपनी प्रेमिका को लाया था।
रुल्दू बोला-सेठ जी ये पैसे तो इस काम के लिए बहुत कम हैं।
सेठ- कैसे?
रुल्दू-सेठ जी इसी काम के लिए सेठानी जी मुझे दो सौ रुपए दिया करती हैं।

Thursday 25 February 2010

पदम पैलेस


{रामपुर का राजमहल, इसका निर्माण तत्कालीन बुशहर रियासत के 121वें शासक राजा पदम सिंह के शासनकाल में हुआ था, इस कारण इसे पदम पैलेस भी कहते हैं.}
(श्री रामप्रसाद मरालू ने रामपुर बुशहर से भेजा।)

Saturday 20 February 2010

नारी की परिभाषा (मेरी नजर में)

  1. रोती और हंसती नारी पर हमेशा विश्वास करना धोखा खाना है।
  2. पुरुष को आलोचना के लिए नारी की आवश्यकता है।
  3. औरत और खरबूजे का चुनाव करना आसान नहीं है।
  4. नारी संसार रूपी वाटिका का सर्वोत्तम फूल है, जिसकी सुगंध और मनोहरता अतुलनीय है।
  5. नारी वह सुंदर फूल है जिसे झरने पानी पिलाते हैं, मेघ नहलाते हैं, चंद्रमा जिनका मुख चूमता है और ओस जिस पर गुलाब छिड़कती है।
  6. नारी प्रकृति की बेटी है, उस पर क्रोध न करो। उसका हृदय कोमल है, उस पर विश्वास करो।
  7. सुंदर नारी एक पूंजी है, भली नारी एक रत्न है और लाजवंती नारी एक खजाना।
  8. नारी के लिए सबकुछ संभव है, किन्तु अपनी इच्छे के खिलाफ प्रेम नहीं।
  9. नारी प्रेम को मुख से प्रकट नहीं करती, मात्र हाव-भावों से जतलाती है।
  10.  नारी के लिए मतृत्व ही उसकी पूर्णता है।
  • (कृपया माइंड न करें, विचार सबके अपने हो सकते हैं।)

धर्म के ठेकेदार

मेरे दद्दू बोला करते थे कि इस संसार में आपसी द्वेष, तनाव के तीन कारण होते हैं-जर, जोरू और जमीन। मगर यह तो इंडिया है मेरे भाई। यहां जब हर कोस पर पानी और बानी बदलती है ततो कंबख्त कहावतें किस खेत की मूली।
अरे यही निष्कर्ष तो निकलता समय-समय पर धर्म और समुदाय के नाम पर होने वाली झड़पों और दंगों से। इसकी फेहरिस्त गुजरात से लेकर न जाने कहां-कहां तक चलती है। आखिर हम विश्व गुरु हैं, जमाना हमीं से सीखकर आगे बढ़ता है। इसी विशेषता पर चलते हुए तो हमने रक्त बहाने का का नया बहाना ढूंढ निकाला है। यह है धर्म। इससे अच्छा बहाना हो भी नहीं सकता क्योंकि धर्म तो सबका व्यक्तिगत मामला जो ठहरा। इसके कारण धर्मांधों को भड़काना और भी आसान हो जाता है। धर्म के नाम पर भड़काना हमारे कुछ महानुभावों की नवविकसित आदत है। हमें यह आदत पड़ी नहीं, बल्कि डाली गई है।
अब आप सोच रहे होंगे डाली किसने। भाई यह काम तो अंग्रेज ही कर सकते थे। उन्होंने धर्म की चक्की में हिंदुस्तानियों को ऐसा पीसा कि हम घनचक्कर बन गए। अच्छे भले शरीफ होते थे, एक दूसरे के दुश्मन बन बैठे, शैतानी सिर पर छा गई। यह गुण पीढ़ी दर पीढ़ी थोड़ा बहुत ट्रांसफर हो रहा है। हमारे पूर्वजों की ताकत का डंका पूरी दुनिया में बजता था वहीं आज 'ठाकरेगीरीÓ की चर्चा है। क्या यही था भगवान श्रीकृष्ण और महात्मा गाधी का संदेश? मीरा भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करती थीं कि हे प्रभु, मेरा तन-मन अपनी भक्ति में इस प्रकार रंग डालो कि कोई बड़े से बड़ा धोबी भी इसे धो न पाए। कुछ धर्म के ठेकेदारों की ओर से बहाए जा रहे लहू का रंग भी अमिट है, लेकिन इसमें आहें भी भरी पड़ी हैं। जो किसी को भी कभी भी धराशायी करने की ताकत रखती हैं।
ये धर्म के ठेकेदार अखंड भारत केसिद्धांत को चूर-चूर करने में भी कसर नहीं छोडऩा चाहते, इसी लिए एक तथाकथित नेता ने गत दिनों अलग महाराष्टï्र का शिगूफा छोडऩे की कोशिश की।
धर्म के ठेकेदारो, अभी भी सुधर जाओ, वरना जब आम आदमी के अंदर का इंसान जागेगा तो आपको खुद अपना वजूद खोजना पड़ेगा।

Thursday 18 February 2010

लीडर बनने का शार्टकट (व्यंग्य)

बुजुर्गों ने कहा है कि अगर किसी भी काम को सही तरीके से किया जाए और सच्ची लगन हो तो कामयाबी जरूर मिलती है। सभी जटिल कार्यों को करने के लिए कई प्रकार के नुस्खे भी प्रचलिता हैं ताकि काम सहजता से हो जाए।
हमारी कंपनी ने जनता की भारी मांग पर उन महत्वकांक्षी युवकों के लिए नया शार्टकट नस्खा ईजाद किया है जो आज की राजनीति के कुछ 'चमकते' सितारों को आदर्श बनाकर इस प्रतिष्ठिïत और कमाऊ धंधे में आने का मन बना चुके हैं। इस नुस्खे का प्रयोग करें, अल्लाह, भगवान और वाहेगुरु चाहेगा तो आपका नाम संसार में अवश्य चमकेगा। आपका नाम लीडरी के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। लीडर बनने का शार्टकट इस प्रकार से है :
सामग्री :
द्वेष की कलियां-तीन तोला।
न्याय के उपदेश : पांच तोला।
खुशामद का रस : ९० मिली लीटर।
बेशर्मी की जड़ : चार तोला।
रिश्वत का पानी : सौ मिली लीटर।
सहनशीलता की पत्तियां : छह तोला।
विधि :
सारी सामग्री को घमंडी लाल की दुकान से लाकर झूठ के खरल में डालकर बेदर्दी के डंडे से रगड़ते रहें जब तक यह पूरी तरह न पिस जाए, जैसे आज महंगाई की चक्की में गरीब पिस रहा है। उसके बाद अपने स्वार्थों के कड़ाहे में डालकर इसे चुगलखोरी के चूल्हे पर चढ़ाकर नफरत की आग में पकाएं। यह मिश्रण तब तक आंच पर रखें जब तक इसका रंग गिरगिट की तरह न हो जाए। फिर इसे गरीबों की आहों से ठंडा कर अपमान की प्याली में डालकर आंखें बंद करके गटक जाइये। बाद में रिश्वत की चाशनी में भिगोई हुई जलेबियां खाएं ताकि जुबान पर कड़वाहट न फैले और आप हंसमुख प्रसाद बने रहें।
मात्रा :
इसका सेवन प्रतिदिन तब तक करें जब तक जनता की अज्ञानता रूपी नींद न टूटे। ऐसा करने से आपका घर सभी सुविधाओं से पूर्ण होगा। देश-प्रेम और प्रेमभाव रूपी बीमारियां तथा व्याधियां दूर भागेंगी।
परहेज : 
इलाज से ज्यादा परहेज का महत्व होता है। परहेज से इलाज का दोगुना फायदा होता है। अत: वफादारी की कच्ची मिठाई, ईमानदारी की खटाई, सच की मिर्च और परोपकार वाले छूत के रोगियों से दूर रहना श्रेयस्कर है। अपने चारों ओर चमचों को पूरी तरह से मंडारने के लिए छोड़ दें ताकि कोई आपकी गुप्त रूप से सीडी बनाने की चाहकर भी हिमाकत न कर पाए। नहीं तो आपको हैवी डोज की जरूरत पड़ सकती है।
दवाई खुद बनाने के झंझट से बचने के लिए आप बना-बनाया नुस्खा भी नीचे लिखे पते पर एक दिन की दवाई के लिए ९९९.०९ रुपए के हिसाब से भेजकर मंगवा सकते हैं। वीपीपी भेजना हमारी मर्जी पर निर्भर करेगा।
पता रहेगा :
-हकीम रांझण लाल, रांझण वफाखाना, मकान नंबर-.०००, वादों वाली गली, हसीन मोहल्ला, बदमाशपुर (कब्रिस्तान)।

Sunday 14 February 2010

प्यार की बयार

कुछ पल पहले
हर ओर थी मस्ती
हंसी, खुशी और उल्लास
खेल रहे थे बच्चे
खरीद रहे थे मिठाई
मम्मी-पापा, दादा-दादी
गर्व से देख रहे थे
अपने चमन के फूलों को
लेकिन...
अचानक बिजली सी कौंधी
धमाके से कान फट गए
और
टूट गए खिलौने
बिखर गए सपने
खून से रंग गई
गलियां और सड़क
बम विस्फोट ने लील ली खुशियां।

न जाने कब खत्म होगा
यह खूनी दहशतगर्दी का दौर
भगवान देगा सद्बुद्धि
अल्लाह बख्शेगा अक्ल
जम्मू-कश्मीर से कन्याकुमारी तक
प्यार की निर्बाध बहेगी बयार।
(पुणे में आतंकी हमले के मृतकों की आत्मा को भगवान शांति दें और घायलों को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ।)

Saturday 6 February 2010

ठूंठ

मैं
एक ठूंठ हूं।

था कभी मैं भी
हरा-भरा
मेरी टहनियों पर भी
कभी बैठते थे पंछी
चहचहाकर
भरते थे लंबी उड़ान
सुबह सुनाते थे
मीठा गान
पर अब हूं जैसे
श्मशान
क्योंकि मैं तो
एक ठूंठ हूं।

रंग-बिरंगे फूंलों पर
मैं खूब इतराता था
दिनभर मंडराते
मीठा गीत गाते
उत्साह की उड़ान भरते
फूलों की सुगंध से
मदहोश
हो जाते भंवरे
सुबह-शाम हाल पूछने
आते थे
लेकिन अब
इस वीराने में मैं
एक ठूंठ हूं।


जेठ की
तपती दुपहरी में
राहगीर करते थे आराम
सूरज के तेज को
खुद सहन कर
मैं देता था सबको सुकून
आंधी-बरसात में
डटा रहता था
डर नहीं था दूर-दूर
लेकिन अब मैं
एक ठूंठ हूं।



फूल हों या फल
मैंने कभी मोह नहीं पाला
जो भी आया
जैसे आया
ल_ï मारा या पत्थर
मैंने कभी न गिला किया
लेकिन अब मैं
एक ठूंठ हूं।

मैं भुला बैठा
परहित में
अपना स्वभाव तक
कंकड़ खाकर भी
दे दिए फल, फूल तक
लेकिन
एक दिन
मेरी घनी छांव में
एक पथिक आया
कुछ सुस्ताकर वह
अचानक
कुल्हाड़ी चलाने लगा
ढलते सूरज की रौशनी के बीच
छीन ली उसने मेरी सांसें
सोचता हूं कहां गलती हो गई
काश!
मैं आज भी ठंडी छांव दे पाता
मीठे-मीठे फल खिलाता
पर क्या करूं
अब तो मैं केवल
एक ठूंठ हूं।

Wednesday 3 February 2010

इस बेबाकी के लिए तो हिम्मत चाहिए...

कुछ समय से हिमाचल की शांत वादियों में सीडी-सीडी की भारी गूंज है। पहले केंद्रीय इस्पात मंत्री वीरभद्र सिंह की सीडी जारी हुई। कुछ दिन पहले दोबारा सियासी तीर चला और अज्ञात लोगों ने मीडिया समेत विभिन्न अधिकारियों को तीन सीडी भेज दीं।
इनमें मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और शिमला के सांसद वीरेंद्र कश्यप के होने का दावा किया गया। विपक्षी पार्टियों ने तो अपना 'विपक्ष धर्मÓ निभाते हुए आलोचना की लेकिन भाजपा के किसी भी नेता ने इस पर बेबाकी से टिप्पणी नहीं की।
लेकिन जब बात भाजपा के राष्टï्रीय उपाध्यक्ष शांता कुमार की हो तो वह अपने फैसलों और टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने साफ कहा कि सीडी बनती है तो उसका कोई तो आधार होता है। उन्होंने मामले की गहन जांच कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई भी मांगी। इस टिप्पणी से शांता कुमार के व्यक्तित्व की झलक साफ दिखती है। १२ सितंबर १९३४ को जन्मे शांता कुमार अपने फैसलों के लिए हमेशा चर्चा में रहे हैं। १९७७ में प्रदेश में पहली बार नान-कांग्रेस सरकार का नेतृत्व करने वाले शांता कुमार को लोग 'पानी वाले मुख्यमंत्री के रूप में भी संबोधित करते रहे हैं। उन्होंने प्रदेशभर में हैंडपंप लगवाने की ऐसी मुहिम चलाई कि लोगों की बरसों पुरानी पेयजल समस्या खत्म हुई। उन्होंने समय-समय पर पंजाब पुनर्गठन के समय हुई हिमाचल के हितों की अनदेखी के खिलाफ भी आवाज उठाई। मुख्यमंत्री के रूप में दूसरी पारी के दौरान उन्होंने बिजली के निजी सेक्टर में उत्पादन पर खास ध्यान दिया, पर्यटन को उद्योग के रूप में विकसित करने की दिशा में ठोस पहल की। यह शांता कुमार ही थे जो केंद्र सरकार को इस मामले में राजी करने में सफल रहे कि प्रदेश में पैदा होने वाली बिजली में से प्रदेश को १२ फीसदी हिस्सा दिया जाए। जब केंद्र में काम करने का मौका मिला तब भी शांता कुमार नहीं चूके और खाद्य और ग्रामीण विकास मंत्री के रूप में महत्वाकांक्षी अंत्योदय अन्न योजना शुरू की। इसी प्रकार हरियाली और स्वजलधारा योजनाएं भी उन्हीं के कार्यकाल में शुरू हुईं, जिन्होंने खूब ख्याति बटोरी। उन्हीं के फैसलों में से एक था 'काम नहीं वेतन नहीं' नियम लागू करना। लेकिन यह कर्मचारियों को कहां रास आने वाला था।
इस परिदृश्य में शांता कुमार की टिप्पणी कि-सीडी बनती है तो उसका कोई तो आधार होता है ...इस बेबाकी के लिए कम हिम्मत नहीं चाहिए।

Tuesday 2 February 2010

पीयू का सराहनीय फैसला

पंजाब यूनिवॢसटी (पीयू) चंडीगढ़ सिंडीकेट ने गत दिनों एक सराहनीय फैसला लिया। इसके तहत फैसला लिया गया कि अगर री-चेकिंग में किसी छात्र के १५ फीसदी से अधिक अंक बढ़ते हैं तो उसकी पूरी फीस लौटा दी जाएगी।
इस प्रकार की शिकायतें आमतौर पर सामने आती रही हैं कि कोई मेधावी छात्र पेपर की सही चेकिंग नहीं होने के कारण फेल हो जाए। ऐसे मौके पर खासकर संबंधित विद्यार्थी और अभिभावकों को यह सवाल कचोटता रहा है कि इसमें उनका क्या कसूर? इस प्रकार की लापरवाही बरतने वाले शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जाती।
पहले सवाल के जवाब में पंजाब यूनिवॢसटी प्रशासन ने छात्र को कुछ हद तक राहत देने की ओर काम किया है। अगर नंबरों में १५ फीसदी से अधिक बढ़ोतरी होती है तो री-चेकिंग की फीस लौटा दी जाएगी। मेरी राय में इसमें १५ फीसदी की शर्त को और कम किया जाना चाहिए था, क्योंकि  पास और फेल होने के बीच में एक नंबर का अंतर ही काफी होता है।
दूसरा सवाल-ऐसे शिक्षकों के खिलाफ किसी कार्यवाही की जरूरत है या नहीं। इसमें हर किसी की राय अपनी हो सकती है लेकिन मेरी राय में उनको कतई नहीं बख्शा जाना चाहिए। ऐसे मामलों में पहली बार पेपर चेकिंग करने वाले लापरवाह शिक्षक को दी गई राशि वापस लेने के अलावा जुर्माना भी किया जाना चाहिए। जिस छात्र को अपने कम नंबर आने पर बढ़ोतरी की पूरी आशा होगी और साधन संपन्न होने के साथ जागरूक होगा वह तो री-चेकिंग के लिए आवेदन करेगा। लेकिन ग्राामीण क्षेत्र के विद्यार्थियों की स्थिति का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है जो ऐसे शिक्षकों की लापरवाही का 'शिकार' बन जाते हैं।  दोषियों पर कड़ी कार्रवाई ही इनके साथ होने वाले खिलवाड़ को रोक सकती है।

Sunday 31 January 2010

...रंग चोखा (व्यंग्य)

गत साल मंदी ने कुछ इस प्रकार से डराया की कुछ लोगों ने तो इससे निपटने के लिए बचत के अलग-अलग तरीके अपनाने शुरू कर दिए। मेरे प्रिय दोस्त हैं पप्पू भाई, उन्होंने तो 'मंदी की मार में कैसे हो उद्धार' नामक पुस्तक ही लिख डाली। इसमें बताए गए नुस्खों को उन्होंने अपने जीवन में भी बखूबी उतारा।
पप्पू भाई के साथ अजीब संयोग रहा। जीवन के पैंतीस बसंत देख चुके थे, लेकिन शादी को तरसते रहे। आखिरकार मंदी के दौर से कुछ पहले ही उनकी सगाई हो पाई। लेकिन मंदी ने उन्हें इतना झकझोर दिया कि देशवासियों के 'कल्याण' के लिए पुस्तक लिख डाली... उसमें मंदी से निपटने के जबरदस्त सुझाव दे डाले। मैंने पुस्तक पढ़ी तो उनके एक सुझाव को पढ़कर मेरा दिल बागबाग हो गया। मैंने सोचा अब आया ऊंट पहाड़ा के नीचे। उन्होंने पुस्तक में लिखा था कि-इन दिनों अगर किसी की शादी करने की इच्छा हो तो उसे दबा दें। इसके दो फायदे होंगे। मंदी के दौरान अगर नौकरी चली भी गई तो जिसने पेट लगाया है खाना भी दे ही देगा। लेकिन अगर शादी करके 'दूसरी' के पेट की जिम्मेदारी ली तो भगवान ही मालिक होगा। दूसरा फायदा होगा कि मंदी से उबरने के बाद वेतनवृद्धि तो तय है...। ऐसे में शादी और धूमधाम से होगी। सब्र का फल मीठा तो होना ही है।
पुस्तक में ऐसे नेक विचार पढ़ते ही मैंने अपने जिगरी दोस्त को फोन कर ही दिया। मैंने कहा-औरों को नसीहत खुद मियां फजीहत तो मत कीजिए... दूसरों को नुस्खा बताने से पहले खुद आजमाइश तो कीजिए। मेरी चुनौती को उन्होंने बुझे मन से स्वीकार कर लिया। कुछ दिन बाद पता चला कि एक तो उनके लिए शादी का 'लड्डू' दूर की कौड़ी हो गया दूसरे मंगनी तोडऩे की एवज में लड़की वालों को भुगतान बी करना पड़ा।
अब एक सहयोगी अरुण को ही ले लें। उनको मंदी के भूत ने कुछ ज्यादा ही डरा दिया। हमेशा क्लीनशेव रहने वाले अरुण ने बाबा का रूप धारण कर लिया। महीना भर शेव ही नहीं बनाते। जब कोई इसका कारण पूछता तो कहते-हनुमान जी का भक्त हूं, उनकी इच्छा का पालन कर रहा हूं। ऐसे में वे लोग अपने आप को सौभाग्यशाली समझने लगे जिनकी जुल्फें हवा हो गई थीं। कहते, न तो तेल की चिंता है न ही हज्जाम के पास जाने की जरूरत।
एक दिन पड़ोसी रुल्दू से मैंने बात-बात में पूछा, भाई साहब मंदी के दौर में महंगाई से कैसे निपट रहे हैं। सुनते ही उन्होंने अपने अनमोल ज्ञान का भंडार खोल कर रख दिया। बोले, इसमें कौन सी नई बात है। वार वहां करना चाहिए जहां सबसे अधिक असर हो। महंगाई सबसे ज्यादा असर रसोई पर करती है। इसके खिलाफ अभियान भी वहीं से शुरू होना चाहिए। मैंने इससे निपटने के लिए दो मिर्चों का सहारा लिया है।
मैंने हैरान होकर सवाल दागा, कैसे? रुल्दू ने बताया कि एक तो हमने इन दिनों दाल-भाजी में तड़का लगाना बंद कर दिया है। पड़ोसियों को इसका अहसास न हो इसके लिए एक मिर्च रखी है। उसे रोज तवे पर थोड़ा सा पानी डाल कर उसमें रख देते हैं। पानी की आवाज और मिर्च जलने की गंध से पड़ोसियों को अहसास होता है कि तड़का लग गया।
उन्होंने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, दूसरे नुस्खे के अनुसार पूरे परिवार के सदस्य खाना खाने से पहले एक ही मिर्च को बारी-बारी से थोड़ा सा नोच लेते हैं। इसके बाद पता नहीं चलता कि खाने में मिर्च डाली है कि नहीं। हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा।

Saturday 30 January 2010

मैं ये चाहूं

फूलों की तान में
भंवरे के गान में
महकता रहे सदा
बचपन मुस्कान से
मैं ये चाहूं।

मासूम की किलकारी में
आंगन की फुलवारी में
पड़ती रहें आशा की किरणें
बेरोकटोक
मैं ये चाहूं।

प्यार की बहार में
दो दिलों के इकरार में
रुकावट न आए कभी
मदमस्त उड़ान में
मैं ये चाहूं।

अधूरी न रह जाए
किसी की तमन्ना
खाली न हो
किसी दिल का कोना
मैं ये चाहूं।

कामयाबी के शिखर पर
मंगल या चांद पर
चौंधिया दे विश्व की आंखें
अपना इंडिया
मैं ये चाहूं।

दोस्ती की बिसात पर
अहसानों का हिसाब कर
भूले से भी न कभी
मन किसी का दुखाऊं
मैं ये चाहूं।

उनकी यादें उनकी बातें
जिन्होंने गुजार दी
मेरे ख्याल में रातें
गम न आए कभी
सदा रहें मुस्कुराते
मैं ये चाहूं।

जीवन के पथ पर
कुछ हो जाए हटकर
खुदा करना ऐसी मेहर
खताएं हो जाएं माफ
मैं ये चाहूं।

मैं तो हूं
रास्ते का कंकड़
हर कोई मारता था ठोकर
रात के अंधियारे से
सुबह के उजाले में
मिले कुछ पारस
उनके दिखाए पथ पर
चलता जाऊं जीवन की डगर
मैं ये चाहूं।