Thursday 25 February 2010

पदम पैलेस


{रामपुर का राजमहल, इसका निर्माण तत्कालीन बुशहर रियासत के 121वें शासक राजा पदम सिंह के शासनकाल में हुआ था, इस कारण इसे पदम पैलेस भी कहते हैं.}
(श्री रामप्रसाद मरालू ने रामपुर बुशहर से भेजा।)

Saturday 20 February 2010

नारी की परिभाषा (मेरी नजर में)

  1. रोती और हंसती नारी पर हमेशा विश्वास करना धोखा खाना है।
  2. पुरुष को आलोचना के लिए नारी की आवश्यकता है।
  3. औरत और खरबूजे का चुनाव करना आसान नहीं है।
  4. नारी संसार रूपी वाटिका का सर्वोत्तम फूल है, जिसकी सुगंध और मनोहरता अतुलनीय है।
  5. नारी वह सुंदर फूल है जिसे झरने पानी पिलाते हैं, मेघ नहलाते हैं, चंद्रमा जिनका मुख चूमता है और ओस जिस पर गुलाब छिड़कती है।
  6. नारी प्रकृति की बेटी है, उस पर क्रोध न करो। उसका हृदय कोमल है, उस पर विश्वास करो।
  7. सुंदर नारी एक पूंजी है, भली नारी एक रत्न है और लाजवंती नारी एक खजाना।
  8. नारी के लिए सबकुछ संभव है, किन्तु अपनी इच्छे के खिलाफ प्रेम नहीं।
  9. नारी प्रेम को मुख से प्रकट नहीं करती, मात्र हाव-भावों से जतलाती है।
  10.  नारी के लिए मतृत्व ही उसकी पूर्णता है।
  • (कृपया माइंड न करें, विचार सबके अपने हो सकते हैं।)

धर्म के ठेकेदार

मेरे दद्दू बोला करते थे कि इस संसार में आपसी द्वेष, तनाव के तीन कारण होते हैं-जर, जोरू और जमीन। मगर यह तो इंडिया है मेरे भाई। यहां जब हर कोस पर पानी और बानी बदलती है ततो कंबख्त कहावतें किस खेत की मूली।
अरे यही निष्कर्ष तो निकलता समय-समय पर धर्म और समुदाय के नाम पर होने वाली झड़पों और दंगों से। इसकी फेहरिस्त गुजरात से लेकर न जाने कहां-कहां तक चलती है। आखिर हम विश्व गुरु हैं, जमाना हमीं से सीखकर आगे बढ़ता है। इसी विशेषता पर चलते हुए तो हमने रक्त बहाने का का नया बहाना ढूंढ निकाला है। यह है धर्म। इससे अच्छा बहाना हो भी नहीं सकता क्योंकि धर्म तो सबका व्यक्तिगत मामला जो ठहरा। इसके कारण धर्मांधों को भड़काना और भी आसान हो जाता है। धर्म के नाम पर भड़काना हमारे कुछ महानुभावों की नवविकसित आदत है। हमें यह आदत पड़ी नहीं, बल्कि डाली गई है।
अब आप सोच रहे होंगे डाली किसने। भाई यह काम तो अंग्रेज ही कर सकते थे। उन्होंने धर्म की चक्की में हिंदुस्तानियों को ऐसा पीसा कि हम घनचक्कर बन गए। अच्छे भले शरीफ होते थे, एक दूसरे के दुश्मन बन बैठे, शैतानी सिर पर छा गई। यह गुण पीढ़ी दर पीढ़ी थोड़ा बहुत ट्रांसफर हो रहा है। हमारे पूर्वजों की ताकत का डंका पूरी दुनिया में बजता था वहीं आज 'ठाकरेगीरीÓ की चर्चा है। क्या यही था भगवान श्रीकृष्ण और महात्मा गाधी का संदेश? मीरा भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करती थीं कि हे प्रभु, मेरा तन-मन अपनी भक्ति में इस प्रकार रंग डालो कि कोई बड़े से बड़ा धोबी भी इसे धो न पाए। कुछ धर्म के ठेकेदारों की ओर से बहाए जा रहे लहू का रंग भी अमिट है, लेकिन इसमें आहें भी भरी पड़ी हैं। जो किसी को भी कभी भी धराशायी करने की ताकत रखती हैं।
ये धर्म के ठेकेदार अखंड भारत केसिद्धांत को चूर-चूर करने में भी कसर नहीं छोडऩा चाहते, इसी लिए एक तथाकथित नेता ने गत दिनों अलग महाराष्टï्र का शिगूफा छोडऩे की कोशिश की।
धर्म के ठेकेदारो, अभी भी सुधर जाओ, वरना जब आम आदमी के अंदर का इंसान जागेगा तो आपको खुद अपना वजूद खोजना पड़ेगा।

Thursday 18 February 2010

लीडर बनने का शार्टकट (व्यंग्य)

बुजुर्गों ने कहा है कि अगर किसी भी काम को सही तरीके से किया जाए और सच्ची लगन हो तो कामयाबी जरूर मिलती है। सभी जटिल कार्यों को करने के लिए कई प्रकार के नुस्खे भी प्रचलिता हैं ताकि काम सहजता से हो जाए।
हमारी कंपनी ने जनता की भारी मांग पर उन महत्वकांक्षी युवकों के लिए नया शार्टकट नस्खा ईजाद किया है जो आज की राजनीति के कुछ 'चमकते' सितारों को आदर्श बनाकर इस प्रतिष्ठिïत और कमाऊ धंधे में आने का मन बना चुके हैं। इस नुस्खे का प्रयोग करें, अल्लाह, भगवान और वाहेगुरु चाहेगा तो आपका नाम संसार में अवश्य चमकेगा। आपका नाम लीडरी के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। लीडर बनने का शार्टकट इस प्रकार से है :
सामग्री :
द्वेष की कलियां-तीन तोला।
न्याय के उपदेश : पांच तोला।
खुशामद का रस : ९० मिली लीटर।
बेशर्मी की जड़ : चार तोला।
रिश्वत का पानी : सौ मिली लीटर।
सहनशीलता की पत्तियां : छह तोला।
विधि :
सारी सामग्री को घमंडी लाल की दुकान से लाकर झूठ के खरल में डालकर बेदर्दी के डंडे से रगड़ते रहें जब तक यह पूरी तरह न पिस जाए, जैसे आज महंगाई की चक्की में गरीब पिस रहा है। उसके बाद अपने स्वार्थों के कड़ाहे में डालकर इसे चुगलखोरी के चूल्हे पर चढ़ाकर नफरत की आग में पकाएं। यह मिश्रण तब तक आंच पर रखें जब तक इसका रंग गिरगिट की तरह न हो जाए। फिर इसे गरीबों की आहों से ठंडा कर अपमान की प्याली में डालकर आंखें बंद करके गटक जाइये। बाद में रिश्वत की चाशनी में भिगोई हुई जलेबियां खाएं ताकि जुबान पर कड़वाहट न फैले और आप हंसमुख प्रसाद बने रहें।
मात्रा :
इसका सेवन प्रतिदिन तब तक करें जब तक जनता की अज्ञानता रूपी नींद न टूटे। ऐसा करने से आपका घर सभी सुविधाओं से पूर्ण होगा। देश-प्रेम और प्रेमभाव रूपी बीमारियां तथा व्याधियां दूर भागेंगी।
परहेज : 
इलाज से ज्यादा परहेज का महत्व होता है। परहेज से इलाज का दोगुना फायदा होता है। अत: वफादारी की कच्ची मिठाई, ईमानदारी की खटाई, सच की मिर्च और परोपकार वाले छूत के रोगियों से दूर रहना श्रेयस्कर है। अपने चारों ओर चमचों को पूरी तरह से मंडारने के लिए छोड़ दें ताकि कोई आपकी गुप्त रूप से सीडी बनाने की चाहकर भी हिमाकत न कर पाए। नहीं तो आपको हैवी डोज की जरूरत पड़ सकती है।
दवाई खुद बनाने के झंझट से बचने के लिए आप बना-बनाया नुस्खा भी नीचे लिखे पते पर एक दिन की दवाई के लिए ९९९.०९ रुपए के हिसाब से भेजकर मंगवा सकते हैं। वीपीपी भेजना हमारी मर्जी पर निर्भर करेगा।
पता रहेगा :
-हकीम रांझण लाल, रांझण वफाखाना, मकान नंबर-.०००, वादों वाली गली, हसीन मोहल्ला, बदमाशपुर (कब्रिस्तान)।

Sunday 14 February 2010

प्यार की बयार

कुछ पल पहले
हर ओर थी मस्ती
हंसी, खुशी और उल्लास
खेल रहे थे बच्चे
खरीद रहे थे मिठाई
मम्मी-पापा, दादा-दादी
गर्व से देख रहे थे
अपने चमन के फूलों को
लेकिन...
अचानक बिजली सी कौंधी
धमाके से कान फट गए
और
टूट गए खिलौने
बिखर गए सपने
खून से रंग गई
गलियां और सड़क
बम विस्फोट ने लील ली खुशियां।

न जाने कब खत्म होगा
यह खूनी दहशतगर्दी का दौर
भगवान देगा सद्बुद्धि
अल्लाह बख्शेगा अक्ल
जम्मू-कश्मीर से कन्याकुमारी तक
प्यार की निर्बाध बहेगी बयार।
(पुणे में आतंकी हमले के मृतकों की आत्मा को भगवान शांति दें और घायलों को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ।)

Saturday 6 February 2010

ठूंठ

मैं
एक ठूंठ हूं।

था कभी मैं भी
हरा-भरा
मेरी टहनियों पर भी
कभी बैठते थे पंछी
चहचहाकर
भरते थे लंबी उड़ान
सुबह सुनाते थे
मीठा गान
पर अब हूं जैसे
श्मशान
क्योंकि मैं तो
एक ठूंठ हूं।

रंग-बिरंगे फूंलों पर
मैं खूब इतराता था
दिनभर मंडराते
मीठा गीत गाते
उत्साह की उड़ान भरते
फूलों की सुगंध से
मदहोश
हो जाते भंवरे
सुबह-शाम हाल पूछने
आते थे
लेकिन अब
इस वीराने में मैं
एक ठूंठ हूं।


जेठ की
तपती दुपहरी में
राहगीर करते थे आराम
सूरज के तेज को
खुद सहन कर
मैं देता था सबको सुकून
आंधी-बरसात में
डटा रहता था
डर नहीं था दूर-दूर
लेकिन अब मैं
एक ठूंठ हूं।



फूल हों या फल
मैंने कभी मोह नहीं पाला
जो भी आया
जैसे आया
ल_ï मारा या पत्थर
मैंने कभी न गिला किया
लेकिन अब मैं
एक ठूंठ हूं।

मैं भुला बैठा
परहित में
अपना स्वभाव तक
कंकड़ खाकर भी
दे दिए फल, फूल तक
लेकिन
एक दिन
मेरी घनी छांव में
एक पथिक आया
कुछ सुस्ताकर वह
अचानक
कुल्हाड़ी चलाने लगा
ढलते सूरज की रौशनी के बीच
छीन ली उसने मेरी सांसें
सोचता हूं कहां गलती हो गई
काश!
मैं आज भी ठंडी छांव दे पाता
मीठे-मीठे फल खिलाता
पर क्या करूं
अब तो मैं केवल
एक ठूंठ हूं।

Wednesday 3 February 2010

इस बेबाकी के लिए तो हिम्मत चाहिए...

कुछ समय से हिमाचल की शांत वादियों में सीडी-सीडी की भारी गूंज है। पहले केंद्रीय इस्पात मंत्री वीरभद्र सिंह की सीडी जारी हुई। कुछ दिन पहले दोबारा सियासी तीर चला और अज्ञात लोगों ने मीडिया समेत विभिन्न अधिकारियों को तीन सीडी भेज दीं।
इनमें मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और शिमला के सांसद वीरेंद्र कश्यप के होने का दावा किया गया। विपक्षी पार्टियों ने तो अपना 'विपक्ष धर्मÓ निभाते हुए आलोचना की लेकिन भाजपा के किसी भी नेता ने इस पर बेबाकी से टिप्पणी नहीं की।
लेकिन जब बात भाजपा के राष्टï्रीय उपाध्यक्ष शांता कुमार की हो तो वह अपने फैसलों और टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने साफ कहा कि सीडी बनती है तो उसका कोई तो आधार होता है। उन्होंने मामले की गहन जांच कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई भी मांगी। इस टिप्पणी से शांता कुमार के व्यक्तित्व की झलक साफ दिखती है। १२ सितंबर १९३४ को जन्मे शांता कुमार अपने फैसलों के लिए हमेशा चर्चा में रहे हैं। १९७७ में प्रदेश में पहली बार नान-कांग्रेस सरकार का नेतृत्व करने वाले शांता कुमार को लोग 'पानी वाले मुख्यमंत्री के रूप में भी संबोधित करते रहे हैं। उन्होंने प्रदेशभर में हैंडपंप लगवाने की ऐसी मुहिम चलाई कि लोगों की बरसों पुरानी पेयजल समस्या खत्म हुई। उन्होंने समय-समय पर पंजाब पुनर्गठन के समय हुई हिमाचल के हितों की अनदेखी के खिलाफ भी आवाज उठाई। मुख्यमंत्री के रूप में दूसरी पारी के दौरान उन्होंने बिजली के निजी सेक्टर में उत्पादन पर खास ध्यान दिया, पर्यटन को उद्योग के रूप में विकसित करने की दिशा में ठोस पहल की। यह शांता कुमार ही थे जो केंद्र सरकार को इस मामले में राजी करने में सफल रहे कि प्रदेश में पैदा होने वाली बिजली में से प्रदेश को १२ फीसदी हिस्सा दिया जाए। जब केंद्र में काम करने का मौका मिला तब भी शांता कुमार नहीं चूके और खाद्य और ग्रामीण विकास मंत्री के रूप में महत्वाकांक्षी अंत्योदय अन्न योजना शुरू की। इसी प्रकार हरियाली और स्वजलधारा योजनाएं भी उन्हीं के कार्यकाल में शुरू हुईं, जिन्होंने खूब ख्याति बटोरी। उन्हीं के फैसलों में से एक था 'काम नहीं वेतन नहीं' नियम लागू करना। लेकिन यह कर्मचारियों को कहां रास आने वाला था।
इस परिदृश्य में शांता कुमार की टिप्पणी कि-सीडी बनती है तो उसका कोई तो आधार होता है ...इस बेबाकी के लिए कम हिम्मत नहीं चाहिए।

Tuesday 2 February 2010

पीयू का सराहनीय फैसला

पंजाब यूनिवॢसटी (पीयू) चंडीगढ़ सिंडीकेट ने गत दिनों एक सराहनीय फैसला लिया। इसके तहत फैसला लिया गया कि अगर री-चेकिंग में किसी छात्र के १५ फीसदी से अधिक अंक बढ़ते हैं तो उसकी पूरी फीस लौटा दी जाएगी।
इस प्रकार की शिकायतें आमतौर पर सामने आती रही हैं कि कोई मेधावी छात्र पेपर की सही चेकिंग नहीं होने के कारण फेल हो जाए। ऐसे मौके पर खासकर संबंधित विद्यार्थी और अभिभावकों को यह सवाल कचोटता रहा है कि इसमें उनका क्या कसूर? इस प्रकार की लापरवाही बरतने वाले शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जाती।
पहले सवाल के जवाब में पंजाब यूनिवॢसटी प्रशासन ने छात्र को कुछ हद तक राहत देने की ओर काम किया है। अगर नंबरों में १५ फीसदी से अधिक बढ़ोतरी होती है तो री-चेकिंग की फीस लौटा दी जाएगी। मेरी राय में इसमें १५ फीसदी की शर्त को और कम किया जाना चाहिए था, क्योंकि  पास और फेल होने के बीच में एक नंबर का अंतर ही काफी होता है।
दूसरा सवाल-ऐसे शिक्षकों के खिलाफ किसी कार्यवाही की जरूरत है या नहीं। इसमें हर किसी की राय अपनी हो सकती है लेकिन मेरी राय में उनको कतई नहीं बख्शा जाना चाहिए। ऐसे मामलों में पहली बार पेपर चेकिंग करने वाले लापरवाह शिक्षक को दी गई राशि वापस लेने के अलावा जुर्माना भी किया जाना चाहिए। जिस छात्र को अपने कम नंबर आने पर बढ़ोतरी की पूरी आशा होगी और साधन संपन्न होने के साथ जागरूक होगा वह तो री-चेकिंग के लिए आवेदन करेगा। लेकिन ग्राामीण क्षेत्र के विद्यार्थियों की स्थिति का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है जो ऐसे शिक्षकों की लापरवाही का 'शिकार' बन जाते हैं।  दोषियों पर कड़ी कार्रवाई ही इनके साथ होने वाले खिलवाड़ को रोक सकती है।