Saturday 10 April 2010

महंगाई से खफा पत्नी

दफ्तर की घड़ी में पांच बजते ही मैंने अपना हड़प्पाकालीन स्कूटर निकाला और सिकंदर की तरह गर्व से सीना तान कर किक मारी तो वह गुर्राने लगा। कुछ दूर जाने के बाद पता चला कि उसे कुछ खुराक की जरूरत है। पेट्रोल पंप पर पहुंचा तो वाहनों की लंबी लाइन देखकर अचकचा गया। सोचा कहीं पंप वालों ने कोई ईनामी योजना तो शुरू नहीं कर दी। दस लीटर भरवाओ, पांच लीटर फ्री...। यह सोचकर तबीयत चकाचक हो गई। कन्फर्म करने के लिए पेट्रोल पंप वाले से फूछा तो उसने घूर कर इस तरह देखा, मानों ओसामा बिन लादेन को देख लिया हो। खैर... स्कूटर का पेट भरवाकर मैं आशियाने की ओर चल पड़ा।
घर केबाहर पहुंचा तो नजारा ही बदला हुआ था। सारी लाइटें बंद। किसी अनिष्टï की आशंका से मैंने अंदर घुसते ही ड्राइंग रूम की बत्ती जलाई ही थी कि पत्नी गरजीं-अभी से लाइट जलाने की क्या जरूरत है... कभी तो बचत की सोचा करो। ऐसा ही चलता रहा तो बुढ़ापा भाड़ झोंकते ही कटेगा।
मैंने सोचा शायद आज सास-बहू में फिर प्रेमालाप हुआ होगा। इसीलिए पत्नी का पारा सातवें आसमान पर है। मैंने पूछा-मां कहीं दिख नहीं रही हैं?
घूमने निकली हैं बुढ़ापे में आपके बाऊ जी के साथ... वह भी मेरी स्कूटी लेकर... जैसे स्कूटी पेट्रोल नहीं पानी से चलती है। पत्नी सांस लेने के लिए रुकीं और फिर शुरू हो गईं-आपकी दीदी आई हैं। अंदर सो रही हैं... वह भी पंखा लगाकर। अगर ज्यादा गर्मी लगती है तो कोठे पर जाकर सो जातीं.... शाम का समय है और हवा भी चल रही है।
मेरा माथा ठनका। सोचा, कोई खास बात है जो आज पत्नी क्लीन बोल्ड करने पर तुली हुई हैं। दिनभर सहेलियों से फोन पर गप्पें हांकने वाली आज बचत की बातें कर रही हैं। अभी मैं सोच ही रहा था कि एक कटोरी मेरे कान के पास से सर्र.... की आवाज करती हुई गुजरी। देखा, एक बिल्ली दुम दबाए भागी जा रही थी और पत्नी झाड़ू लेकर उसके पीछे दौड़ रही थीं। पत्नी बड़बड़ा रही थीं, सोचा था कि कुछ दूध से किफायत करूंगी लेकिन कलमुंही ने जूठा कर दिया।
खैर, पत्नी लौटीं तो पूछने की गुस्ताखी कर बैठा-आखिर पता तो चले कि मामला क्या है? जो बातें आज तक नहीं हुईं वे आज क्यों हो रही हैं?
पत्नी गरजीं-आज से फालतू खर्चे बंद।
ऐसी भी क्या नाराजगी कि मामले की पूंछ ही पकड़ में न आए, मैंने एक और जुर्रत की।
दफ्तर में दिनभर क्या भाड़ झोंकते हैं? पता है कि  रसोई गैस के रेट बढ़ गए हैं।
तो फिर क्या हुआ, तुम कहोगी आज से सांस लेना बंद... तो क्या बंद कर दूंगा? मेरा पारा थोड़ा सा उखड़ा।
पत्नी ने झल्लाकर कहा-जानते हो पेट्रोल और डीजल के दाम भी बढ़ गए हैं। मैं आज ही रमेश भाई से सैकेंड हैंड साइकिल खरीदवा देती हूं। पेट्रोल का खर्च बच जाएगा, तोंद को शर्म आएगी और चुस्ती भी बनी रहेगी।
अपने मामले में टांग अड़ती देख मैंने पूछा-और जो दिनभर खुद स्कूटी पर मोहल्ले का दौरा करती रहती हो वो?
पत्नी ने खूंखार नजरों से पल भर मुझे घूरा और बोलीं-यह मेरा निजी मामला है। अगर मैं दिनभर धूप में पैदल भटकती रही तो आपकी ही नाक कटेगी। लोग कहेंगे-देखो मिसेज झिलमिल कितनी काली कलूटी हैं। फिर मुझे ब्यूटी पार्लर जाना पड़ेगा... इसमें क्या कम खर्च होगा?
...इतना सुनते-सुनते मैं पत्नी की समझदारी का कायल हो गया।

Tuesday 6 April 2010

लंबी रात


चौराहे पर
चमकता विशाल प्रकाशपुंज
करता है उजाला
लेकिन
मैं तो हूँ बेघर
फुटपाथ है बसेरा
रोशनी में मेरी
पीठ पर न बरस पड़े
कहीं 'खाकी' का डंडा
इसलिए
ढूंढता हूँ अँधेरा कोना
जहाँ
न कोई आये न  जाये
बस!
ये लंबी रात
सुकून से कट जाये.