Sunday 31 January 2010

...रंग चोखा (व्यंग्य)

गत साल मंदी ने कुछ इस प्रकार से डराया की कुछ लोगों ने तो इससे निपटने के लिए बचत के अलग-अलग तरीके अपनाने शुरू कर दिए। मेरे प्रिय दोस्त हैं पप्पू भाई, उन्होंने तो 'मंदी की मार में कैसे हो उद्धार' नामक पुस्तक ही लिख डाली। इसमें बताए गए नुस्खों को उन्होंने अपने जीवन में भी बखूबी उतारा।
पप्पू भाई के साथ अजीब संयोग रहा। जीवन के पैंतीस बसंत देख चुके थे, लेकिन शादी को तरसते रहे। आखिरकार मंदी के दौर से कुछ पहले ही उनकी सगाई हो पाई। लेकिन मंदी ने उन्हें इतना झकझोर दिया कि देशवासियों के 'कल्याण' के लिए पुस्तक लिख डाली... उसमें मंदी से निपटने के जबरदस्त सुझाव दे डाले। मैंने पुस्तक पढ़ी तो उनके एक सुझाव को पढ़कर मेरा दिल बागबाग हो गया। मैंने सोचा अब आया ऊंट पहाड़ा के नीचे। उन्होंने पुस्तक में लिखा था कि-इन दिनों अगर किसी की शादी करने की इच्छा हो तो उसे दबा दें। इसके दो फायदे होंगे। मंदी के दौरान अगर नौकरी चली भी गई तो जिसने पेट लगाया है खाना भी दे ही देगा। लेकिन अगर शादी करके 'दूसरी' के पेट की जिम्मेदारी ली तो भगवान ही मालिक होगा। दूसरा फायदा होगा कि मंदी से उबरने के बाद वेतनवृद्धि तो तय है...। ऐसे में शादी और धूमधाम से होगी। सब्र का फल मीठा तो होना ही है।
पुस्तक में ऐसे नेक विचार पढ़ते ही मैंने अपने जिगरी दोस्त को फोन कर ही दिया। मैंने कहा-औरों को नसीहत खुद मियां फजीहत तो मत कीजिए... दूसरों को नुस्खा बताने से पहले खुद आजमाइश तो कीजिए। मेरी चुनौती को उन्होंने बुझे मन से स्वीकार कर लिया। कुछ दिन बाद पता चला कि एक तो उनके लिए शादी का 'लड्डू' दूर की कौड़ी हो गया दूसरे मंगनी तोडऩे की एवज में लड़की वालों को भुगतान बी करना पड़ा।
अब एक सहयोगी अरुण को ही ले लें। उनको मंदी के भूत ने कुछ ज्यादा ही डरा दिया। हमेशा क्लीनशेव रहने वाले अरुण ने बाबा का रूप धारण कर लिया। महीना भर शेव ही नहीं बनाते। जब कोई इसका कारण पूछता तो कहते-हनुमान जी का भक्त हूं, उनकी इच्छा का पालन कर रहा हूं। ऐसे में वे लोग अपने आप को सौभाग्यशाली समझने लगे जिनकी जुल्फें हवा हो गई थीं। कहते, न तो तेल की चिंता है न ही हज्जाम के पास जाने की जरूरत।
एक दिन पड़ोसी रुल्दू से मैंने बात-बात में पूछा, भाई साहब मंदी के दौर में महंगाई से कैसे निपट रहे हैं। सुनते ही उन्होंने अपने अनमोल ज्ञान का भंडार खोल कर रख दिया। बोले, इसमें कौन सी नई बात है। वार वहां करना चाहिए जहां सबसे अधिक असर हो। महंगाई सबसे ज्यादा असर रसोई पर करती है। इसके खिलाफ अभियान भी वहीं से शुरू होना चाहिए। मैंने इससे निपटने के लिए दो मिर्चों का सहारा लिया है।
मैंने हैरान होकर सवाल दागा, कैसे? रुल्दू ने बताया कि एक तो हमने इन दिनों दाल-भाजी में तड़का लगाना बंद कर दिया है। पड़ोसियों को इसका अहसास न हो इसके लिए एक मिर्च रखी है। उसे रोज तवे पर थोड़ा सा पानी डाल कर उसमें रख देते हैं। पानी की आवाज और मिर्च जलने की गंध से पड़ोसियों को अहसास होता है कि तड़का लग गया।
उन्होंने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, दूसरे नुस्खे के अनुसार पूरे परिवार के सदस्य खाना खाने से पहले एक ही मिर्च को बारी-बारी से थोड़ा सा नोच लेते हैं। इसके बाद पता नहीं चलता कि खाने में मिर्च डाली है कि नहीं। हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा।

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