मैं
एक ठूंठ हूं।
था कभी मैं भी
हरा-भरा
मेरी टहनियों पर भी
कभी बैठते थे पंछी
चहचहाकर
भरते थे लंबी उड़ान
सुबह सुनाते थे
मीठा गान
पर अब हूं जैसे
श्मशान
क्योंकि मैं तो
एक ठूंठ हूं।
रंग-बिरंगे फूंलों पर
मैं खूब इतराता था
दिनभर मंडराते
मीठा गीत गाते
उत्साह की उड़ान भरते
फूलों की सुगंध से
मदहोश
हो जाते भंवरे
सुबह-शाम हाल पूछने
आते थे
लेकिन अब
इस वीराने में मैं
एक ठूंठ हूं।
जेठ की
तपती दुपहरी में
राहगीर करते थे आराम
सूरज के तेज को
खुद सहन कर
मैं देता था सबको सुकून
आंधी-बरसात में
डटा रहता था
डर नहीं था दूर-दूर
लेकिन अब मैं
एक ठूंठ हूं।
फूल हों या फल
मैंने कभी मोह नहीं पाला
जो भी आया
जैसे आया
ल_ï मारा या पत्थर
मैंने कभी न गिला किया
लेकिन अब मैं
एक ठूंठ हूं।
मैं भुला बैठा
परहित में
अपना स्वभाव तक
कंकड़ खाकर भी
दे दिए फल, फूल तक
लेकिन
एक दिन
मेरी घनी छांव में
एक पथिक आया
कुछ सुस्ताकर वह
अचानक
कुल्हाड़ी चलाने लगा
ढलते सूरज की रौशनी के बीच
छीन ली उसने मेरी सांसें
सोचता हूं कहां गलती हो गई
काश!
मैं आज भी ठंडी छांव दे पाता
मीठे-मीठे फल खिलाता
पर क्या करूं
अब तो मैं केवल
एक ठूंठ हूं।
एक ठूंठ हूं।
था कभी मैं भी
हरा-भरा
मेरी टहनियों पर भी
कभी बैठते थे पंछी
चहचहाकर
भरते थे लंबी उड़ान
सुबह सुनाते थे
मीठा गान
पर अब हूं जैसे
श्मशान
क्योंकि मैं तो
एक ठूंठ हूं।
रंग-बिरंगे फूंलों पर
मैं खूब इतराता था
दिनभर मंडराते
मीठा गीत गाते
उत्साह की उड़ान भरते
फूलों की सुगंध से
मदहोश
हो जाते भंवरे
सुबह-शाम हाल पूछने
आते थे
लेकिन अब
इस वीराने में मैं
एक ठूंठ हूं।
जेठ की
तपती दुपहरी में
राहगीर करते थे आराम
सूरज के तेज को
खुद सहन कर
मैं देता था सबको सुकून
आंधी-बरसात में
डटा रहता था
डर नहीं था दूर-दूर
लेकिन अब मैं
एक ठूंठ हूं।
फूल हों या फल
मैंने कभी मोह नहीं पाला
जो भी आया
जैसे आया
ल_ï मारा या पत्थर
मैंने कभी न गिला किया
लेकिन अब मैं
एक ठूंठ हूं।
मैं भुला बैठा
परहित में
अपना स्वभाव तक
कंकड़ खाकर भी
दे दिए फल, फूल तक
लेकिन
एक दिन
मेरी घनी छांव में
एक पथिक आया
कुछ सुस्ताकर वह
अचानक
कुल्हाड़ी चलाने लगा
ढलते सूरज की रौशनी के बीच
छीन ली उसने मेरी सांसें
सोचता हूं कहां गलती हो गई
काश!
मैं आज भी ठंडी छांव दे पाता
मीठे-मीठे फल खिलाता
पर क्या करूं
अब तो मैं केवल
एक ठूंठ हूं।
nikka ram g toonth mat rahiye. santbaba ka asribad lekar hre bhre hoiye
ReplyDeleter thapliyal
dehradun
हमेशा कोई हरा भरा नहीं होता,
ReplyDeleteहरा है जो ठूँठ हो सकता है वो,
और ठूँठ हो सकता है फिर से हरा।
निका राम जी,
फिर से बारिश होगी,
फिर से ठूंठ पर उगेंगी कोंपलें,