Sunday 7 March 2010

हमने चाहा....

हमने चाहा कि कोई हमे बता दे
क्या है जिंदगी 
थके हुए मुसाफिर ने कहा...
कि रुकना है जिंदगी
गुजर गई कई सदियां....
पर हम समझ न सके
क्या है जिंदगी 
खुशियों के दायरे ने कहा...
प्यार है जिंदगी 
लेकिन अगर कोई मुझसे पूछे
कि क्या है जिंदगी
तो मैं तो बस यही कहूंगा-
ठोकर खाकर संभलना ही है जिंदगी।
-रामप्रसाद मरालू

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