Wednesday 10 March 2010

साजिशों का शहर

फिर एक याद ने
मुझे रात भर जगाया
दिल के कोने में छुपे
गम ने जमकर रुलाया।

न उजाले में चैन
अंधेरा भी डराता है
अपनों के दिए जख्म
अब नहीं कोई सहलाता है।

साजिशों के शहर में
बन गया मैं शिकार
मांग न पाए कोई पानी
दिल के मेहमानों ने
कर दिया ऐसा प्रहार।

अब उम्मीद-ए-वफा नहीं उनसे
जिन्होंने दिल तोड़कर
सिर भी कुचल डाला
जिंदगी की इस हेराफेरी में
हमारा जहां ही लूट डाला।

चाहत में तेरी
हमने मांगी वफा सदा
तुम्हारे कदमों में बिछ जाने की
हमेशा 'बिलासपुरी' ने मांगी मुराद
लेकिन अफसोस
चकनाचूर हो गया
हसरतों का घरौंदा।

फिर भी एक ही है तमन्ना
मेरी मिट्टी भी आए काम तेरे
कतरा-कतरा खून का
पूरे कर दे अरमान तेरे
मिल जाए जो कभी सुबूत
मेरी बेगुनाही का ऐ दोस्त
सितारों में ढूंढ लेना
आपके अहसानों की रौशनी में
हमेशा जगमगाता रहूंगा।

5 comments:

  1. ईमानदारी झलकती है आपकी लाइनों में ...शुभकामनायें !

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  2. जिंदगी कि सच्चाई लिख डाली है....

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  3. मेरी बेगुनाही का ऐ दोस्त
    सितारों में ढूंढ लेना
    आपके अहसानों की रौशनी में
    हमेशा जगमगाता रहूंगा।

    बहुत खूब .....!!
    गहरी चोट ही लेखन की वफादार सीढ़ी है ......!!

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  4. आप ने बहुत बढ़िया लिखा है.बहुत बहुत बधाई .
    फिर भी एक ही है तमन्ना
    मेरी मिट्टी भी आए काम तेरे
    कतरा-कतरा खून का
    पूरे कर दे अरमान तेरे
    मिल जाए जो कभी सुबूत
    मेरी बेगुनाही का ऐ दोस्त
    सितारों में ढूंढ लेना
    आपके अहसानों की रौशनी में
    हमेशा जगमगाता रहूंगा।

    गहरी छाप छोड़ गई ये पंक्तियाँ.

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