
इस प्रकार की शिकायतें आमतौर पर सामने आती रही हैं कि कोई मेधावी छात्र पेपर की सही चेकिंग नहीं होने के कारण फेल हो जाए। ऐसे मौके पर खासकर संबंधित विद्यार्थी और अभिभावकों को यह सवाल कचोटता रहा है कि इसमें उनका क्या कसूर? इस प्रकार की लापरवाही बरतने वाले शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जाती।
पहले सवाल के जवाब में पंजाब यूनिवॢसटी प्रशासन ने छात्र को कुछ हद तक राहत देने की ओर काम किया है। अगर नंबरों में १५ फीसदी से अधिक बढ़ोतरी होती है तो री-चेकिंग की फीस लौटा दी जाएगी। मेरी राय में इसमें १५ फीसदी की शर्त को और कम किया जाना चाहिए था, क्योंकि पास और फेल होने के बीच में एक नंबर का अंतर ही काफी होता है।
दूसरा सवाल-ऐसे शिक्षकों के खिलाफ किसी कार्यवाही की जरूरत है या नहीं। इसमें हर किसी की राय अपनी हो सकती है लेकिन मेरी राय में उनको कतई नहीं बख्शा जाना चाहिए। ऐसे मामलों में पहली बार पेपर चेकिंग करने वाले लापरवाह शिक्षक को दी गई राशि वापस लेने के अलावा जुर्माना भी किया जाना चाहिए। जिस छात्र को अपने कम नंबर आने पर बढ़ोतरी की पूरी आशा होगी और साधन संपन्न होने के साथ जागरूक होगा वह तो री-चेकिंग के लिए आवेदन करेगा। लेकिन ग्राामीण क्षेत्र के विद्यार्थियों की स्थिति का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है जो ऐसे शिक्षकों की लापरवाही का 'शिकार' बन जाते हैं। दोषियों पर कड़ी कार्रवाई ही इनके साथ होने वाले खिलवाड़ को रोक सकती है।
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